भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कै रति रँग थकी थिर ह्वै / पद्माकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कै रति रँग थकी थिर ह्वै परजँक पै प्यारी परी सुख पाय कै ।
त्योँ पदमाकर स्वेद के बुँद रहे मुकताहल से छवि छाय कै ।
बिँदु रचे मेहदी के लसे कर तापर यो रह्यो आनन आय कै ।
इन्दु मनो अरविन्द पै राजत इन्द्र बधून को बॄन्द बिछाय कै।

पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।