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कोशी के तीरेॅ-तीरेॅ / भाग 10 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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अवतार नै होय रहलोॅ छै
सब जगह कृष्ण होय के स्वांग
सब जगह कीचक के
साफ-साफ कृष्ण में मतभेद
कोय नै चाहै छै
बाजेॅ कृष्ण रोॅ बाँसुरी
बजेॅ-तेॅ-बजेॅ
वहेॅ कृष्ण के पाँचजन्य
यहेॅ सें तेॅ एत्तेॅ विरोध छै
जाति, धरम, पंथ के
शांति के संदेश सुनै लेॅ
कोय तैयार नै।

हे कोशी माय
आपनोॅ अंग देश तेॅ
ऋषि शृंग के देश रहै
पुत्र केॅ दै वाला
पुत्र है वाला ई केना केॅ होय गेलै
आपनोॅ ई देश तेॅ
तीर्थ कर महावीर के जन्मभूमि छिकै
भगवान बुद्ध के
सबसें प्यारोॅ भूमि
ऊ हठाते केना
हिंसक बनी गेलै
के नजर लगाय गेलै एकरा
कौनें सिखाय देलकै एकरा
मरकाठोॅ पर बलि राखी केॅ
उत्सव मनाय लेली।
नै-ई तोरोॅ सन्तान नै हुवेॅ पारेॅ
तोरोॅ ऊ सिनी बेटा तेॅ
कहीं भूख-प्यास केॅ

खतम कै के लड़ाय में
खुद खतम होय गेलौं
ई तेॅ ओकरो जिनखेल छेकै
जे प्रेत लीकोॅ सें आवी केॅ
बसी गेलोॅ छै
आकि जे बसैलोॅ गेलोॅ छै
यहेॅ बलिकथा कहै लेॅ
बलि करवाय लेॅ
भेद बढ़ाय लेॅ
ई अंग देश के माटी केॅ लड़ाय लेॅ
हे कोशी माय धीरेॅ-धीरेॅ
तोरोॅ करुणा के कथा
विलुप्त होय रहलोॅ छौं
कैहिनें कि तोरोॅ असलका बेटा सिनी
बिलैलोॅ जाय रहलोॅ छौं
हे कोशी माय
तारोॅ पेटोॅ में
दुनियाँ भरी के
प्रकाश जरै छौं
चाहोॅ तेॅ सौंसे दुनिया केॅ
झकझक करी दौ
मतरकि तोरोॅ आँचल
अन्हारोॅ सें
कुप्प बनलोॅ रहै छौं
जेना दिन्हौ में अन्हार।
भगावै छै अन्हार केॅ
कोय भुकमुकैतें दीया
जेना जरतें रहेॅ
कोय गाछी के ठारी-ठारी में
भकजोगनी-राती में
सब तरफ सें हारलोॅ
कोय मनुक्खोॅ के मनोॅ में
जेना कोय छोटोॅ रङ आशा।

ठीक हेन्हे हमरोॅ गाँव
माय कोशी गालोॅ पर
जेना छोटोॅ रङ के
कारोॅ तिल
हाँसै छै कोशी माय
तेॅ तिल हेराय जाय छै
नै हाँसै छै
तेॅ देखारोॅ दै छै
बाँही बैठी केॅ
हम्में देखै छियै
माय कोशी केॅ
गोड़ सें लै केॅ मुँह तक
एकदम मनझमान छै माय
एकदम कलान्त छै माय
जेना कत्तेॅ-कत्तेॅ
सपना हेराय गेलोॅ रहेॅ
कत्तेॅ-कत्तेॅ
आपने बेटा सिनी केॅ
अकाले मरतें देखी केॅ
बदहवास बनी गेलोॅ रहेॅ माय कोशी
केश बिखरलोॅ
अँचरा पसरलोॅ
धूल-धूसरित
आँखी सें टघरलोॅ लोर
गालोॅ पर सुखलोॅ
आँखी में नै जोत
नै तेॅ काजर
स्याह पड़ी गेलोॅ छै माय

जेना काजर आँखी में लगाय के बदला
चेहरा पर पोती लेलेॅ रहेॅ
यहाँ-वहाँ कालिख
सच कहै छियौं हे कोशी माय
तोरोॅ ई हाल देखी केॅ
बड़ा कलपित्तोॅ छै मोॅन
कलपित्ते नै
जानें कौन आशंका सें
क्षणे-क्षण काँपतें रहै छै मोॅन
जों कहीं
हेनोॅ अनिष्ट होइये जाय
टूटिये जाय
तोरोॅ बाँही पर बाँधलोॅ
बाजूबन्द
आरो तोरोॅ जलराशि
होहावेॅ लगै
तबेॅ की होतै
की तबेॅ ऐतै फेन सें
वहेॅ मीन
आपनोॅ सींग सें बाँधै लेॅ
मनु-पुत्र के नाव केॅ
बचेॅ पारतै ई मनु-पुत्र
सोचथैं
मन विचलित होय जाय छै
कहाँ सें ऐतै ऊ मीन
आबेॅ तेॅ हे कोशी माय
तोरोॅ बेटा सिनी केॅ
नै कहीं देखारोॅ पड़ै छै
ऊ खमैन
ऊ कटैया
ऊ स्वर्ण खैरका

ऊ छेंगरास, कोंधरी, करसी
ऊ झाझड राजबम आरो देसारी
जबेॅ गंगा के गोड़े में
बाँधोॅ के बेड़ी पड़ी गेलोॅ छै
तबेॅ हे माय
कहाँ सें तोरोॅ गल्ला में
लहरैतौं हिलसा के हार।

बड़ी उदास छै
माय कोशी
चारो तरफ पसरलोॅ छै
उदास पतझड़ के हाहाकार
खड़खड़ैतें गाछ
हवा आरो पानी
बड़बड़ैतें भेर आरो साँझ
बौवैतें दिन
कानतें रात
जलतें सौगात
काँही नै दिखाय छै
कोय गाछोॅ पर
वसन्त के आवै के चेन्होॅ
काँही सें नै सिहरन छै
कोय्यो ठारी आरो पत्त में
की उगवो करतै
कभियो यै सिनी में
कोय कोंपल
कोय फूल
शीशम तक सन्नाटा में छै
महुआ आबेॅ नै मतावै
आपनोॅ मतैलोॅ फूलोॅ सें
बाँस वोॅन नै बजावै

वही कान्हा वाला बाँसुरी
हवा के छेड़तैं
हेना में
डैनोॅ फेलैलेॅ जे आवै छेलै
दूर-दराज देशोॅ सें
झुण्ड-के-झुण्ड बाँधी
लाल-हरा-पीला
सबुज रङ के
मनमोहै वाला चिड़ियाँ
वहू धीरेॅ-धीरेॅ
आना बंद करी देलेॅ छै
कौशिकी के बचलोॅ झाड़ी में
छिपी केॅ
कसाय सिनी बैठी गेलोॅ छै
हाथोॅ में बन्दूक, तीर
आरो गुलेल लेलेॅ
भयभीत छै चिड़िया
सुन्नोॅ छै पोखर-सरोवर
नदी के छाड़न में
जमी गेलोॅ छै-काई-कीचड़
चारो तरफ विषैन-विषैन
बड़ी उदास छै माय कोशी
कोशी के तीरेॅ-तीरेॅ
हम्में देखलेॅ छियै
घूमतें बदहवास
कौशिकी माय केॅ
अकेली गाय केॅ
पीछू हजारो-हजार कसाय केॅ।