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कौने लगावल बाग बगिचवा, ललना कौने लगावल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में पति अपनी गर्भवती पत्नी के लिए नारंगी तोड़ने को अपने साले के बगीचे में जाता है। वहाँ वह पकड़ा जाता है और नारंगी के पेड़ में ही रेशम की डोरी से बाँध दिया जाता है। पता आदि पूछने पर रखवाला, जो उसका साला है, कहता है कि तुमने पहले क्यों नहीं कहा। अगर मुझे इसका पता होता कि मेमरी बहन गर्भवती है तो बैलों पर लदवाकर नारंगी भेजवा देता। पति नारंगी लेकर आता है और अपनी प्रियतमा को देते हुए एकांत में चखने के लिए कहता है। परन्तु वह उत्तर देती है-मैं अपनी सास और ननद को पहले दूँगी। उन लोगों के जूठे को ही मैं खाऊँगी, जिसके पुण्यस्वरूप मुझे पुत्र-फल की प्राप्ति होगी।’
इस गीत में भारतीय नारी की बड़ों के प्रति अत्यधिक सेवा सत्कार की भावना वर्णित है। ऐसी सास-ननदें भी धन्य हैं, जिन्हें ऐसी सेवापरायणा पुत्रवधू तथा भाभी मिली हो।

कौने लगावल बाग बगिचवा, ललना कौने लगावल
फलबड़िया, कि केरे<ref>किसने</ref> बाबू चोरी करै हे॥1॥
बाबा लगावल बाग बगिचवा, ललना भैया लगावल
फुलबड़िया, दुलहा बाबू चोरी करे हे॥2॥
खोच<ref>चादर या साड़ी का आँचल</ref> भरी तोड़ले मौनिया<ref>बाँस की कमाची या सींक की बनी गोल छोटी डलिया</ref> भरी हो, ललना आबि<ref>आ गया</ref> परलै रखबरबा न हे।
रेशम डोरी बाँधले लवँगिया गाछी जोरलै, फुलबा सटिया मारलै हे॥3॥
किए तोरी मैया बहिन रानी, अरे गरब साये<ref>गर्भ, गर्भवती</ref>हे।
ललना, किए तोरी सग<ref>सगी</ref> पितिआएन<ref>चाची; चाचा की पत्नी, पितृव्यानी</ref> नारंगी तोड़े आयल हे॥4॥
नहिं मोरी मैया बहिन रानी, नहिं मोरी सग पितिआएन हे।
ललना, छिकी मोरी घर गिरथैनियाँ<ref>गृहिणी</ref>, नारंगी तोड़े आयल हे॥5॥
एते हम जानतेॅ बहिन रानी, आरे गरब सायें हे।
ललना, बरदें<ref>बैलोें पर</ref> लधैतेॅ<ref>लदवाता</ref> नारंगी, बहिनी घर भेजतेॅ हे॥6॥
कहाँ भेली, किएभेली धनि सुकुमारियो हे।
लेहो धानि आरे नारंगी भीतर जाय खोलऽ उपर जाय चाखऽ हे॥7॥
तनि एक देब हमें सासु रानी आरू ननद रानी हे।
ललना, उनको जुठैया हम खायब, बबुआ फल पायब हो॥8॥

शब्दार्थ
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