भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौन / शेखर सिंह मंगलम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नींद में मेरा देले दरवाज़ा
कौन खटखटा रहा है
मेरे एहसासों के दरीचे पर लगा पर्दा
ये कौन हटा रहा है?

माथे की शिकन अभी-अभी
आसमानों को छू रही थी
आसमानों का क़द
फिर ये कौन घटा रहा है?

कोई पूछे उफ़क़ के
गली मुहल्लों में फिरते चाँद सितारों से
एक बेवफ़ा चली गई
दूसरी बेवफ़ा को मेरा पता
अब कौन बता रहा है?