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क्रांति के बिंब / नवारुण भट्टाचार्य

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कई एक कवि बिना पैसे के डॉक्टरी कर रहे हैं
चाँद पर छलाँग लगाने से पहले प्रेमी गिरफ़्तार
पुलिस की गाड़ियाँ चौबीस घंटे के भीतर
स्कूल की बसें बना दी जाएँगी

आधी रात को जनविरोधी पार्टियों की लाइन
                         उखाड़ फेंकी जा रही है

लेटरबॉक्स में चिड़ियों के घोंसला बनाने से
                           काम ठप
किसी सिद्धांतकार ने एक्वेरियम में बिल्ली पाली है
रेडियो कोई नहीं बजाता क्योंकि नेताओं के भाषण सुनना
                                  अच्छा नहीं लग रहा है

बहस हो रही है पौधों और नन्हीं मछलियों पर
                              उदास संगीत के प्रभाव को लेकर

अब से आँसुओं से ही चलेंगी मोटर गाड़ियाँ
श्रमिकों का नाटक करने वाले श्रमिकों के हाथों परेशान
कौन कह सकता है समस्या नहीं है हमारी इस नई व्यवस्था में
क्या ऐसा ही लगता है समाचार सुनने के बाद ?