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क्षमा की वेला / अज्ञेय

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आह-
भूल मुझ से हुई-मेरा जागता है ज्ञान,
किन्तु यह जो गाँठ है साझी हमारी,
खोल सकता हूँ अकेला कौन से अभिमान के बल पर?
-हाँ, तुम्हारे चेतना-तल पर

तैर आये अगर मेरा ध्यान,
और हो अम्लान (चेतना के सलिल से धुल कर)
तो वही हो क्षमा की वेला-
अनाहत संवेदना ही में तुम्हारी लीन हो परिताप, छूटे शाप,
मुक्ति की बेला-मिटे अन्तर्दाह!

दिल्ली-गुरदासपुर, 27 जुलाई, 1946