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खिली है ख़ूब छिटकी / केदारनाथ अग्रवाल

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खिली है
      ख़ूब छिटकी
                पारदर्शी चान्दनी !

उलटे पड़े हैं मगन मौन,
रेत पर लेटे,
         सन्तुष्ट कछुए,
पीठ से धरती दबाए — 
आसमान को पेट पर उठाए !

नदी पीती है
प्रकाश-प्रकाश !
पानी की नहीं —
प्रकाश की बहती है नदी

यथार्थ की शिलाएँ —
                शाप से मुक्त,
किनारे बैठी
अहिल्याओं-सी हंसती है ।
        और पुल
               खम्भों पर खड़ा
आवागमन का मार्ग बना है !
 
18 मार्च 1980
(पारदर्शी चान्दनी में केन-किनारे का दृश्य)