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खूनी पुल पर से होकर / तरुण

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कैंचियों, जंजीरों व छुरे-चाकुओं से बने
एक झूलते विशाल तंग पुल पर से
चले जा रहे हैं हम सब लोग!
कौवे की चोंच से
घने काले सुनसान ठण्डे
सायँ-सायँ भीमाकार अँधेरे में!
और नीचे हमारे उफनती बही जा रही है, खारे पानी की,
मौत की एक काली नदी!
यायावरों से, कंजड़ों से चले आ रहे हैं हम-
अपने जोरू-जाँठे के साथ
बेतहाशा!
कंधों पर लदी अपनी टूटी चारपाइयाँ, गूदड़, पोटलियाँ,
कावड़-कबाड़ समेटे;
साथ में हैं मुर्गे, रेबड़, बकरियाँ व हड़के कुत्ते।
रास्ते की तलाश करते, भूमि में अपने कीलदार
शस्त्र गड़ाते-खच्च-खच्च!
छुरे, चाकू, गँड़ासेपड़ जायँ-पता नहीं, कहाँ!
पहाड़ियाँ, जंगल और अँधेरा!
और भीतर है बस ज्वलन्त जिजीविषा! जिजीविषा!!
प्यस है-पानी कहाँ!
अँधेरा सायँ-सायँ
दिशाएँ भायँ-भायँ!

और, नीचे हमारे बही जा रही है-
मौत की एक ठण्डी काली नदी!

1977