भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खूब रसीले जामुन / विनोदचंद्र पांडेय 'विनोद'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये जामुन काले-काले हैं!
जब बादल जल बरसाते हैं,
ये पेड़ों पर पक जाते हैं,
भौंरों-सा रूप दिखाते हैं,
करते सबको मतवाले हैं!

होते सब खूब रसीले हैं
बैंगनी, लाल या नीले हैं
सब के सब रंग-रंगीले हैं,
सुंदर सुकुमार निराले हैं!

देखो, डालों पर लटके हैं,
गिरते जब लगते झटके हैं,
बच्चे खाते डट-डट के हैं,
बेचते इन्हें फलवाले हैं!

मानो रस में ही पगते हैं,
सबको ही अच्छे लगते हैं,
ले भी लो बिल्कुल सस्ते हैं,
सब पर जादू-सा डाले हैं!
ये जामुन काले-काले हैं!