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खो के वहम-ओ-गुमान की घड़ियाँ / अलका मिश्रा

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खो के वहम-ओ-गुमान की घड़ियाँ
मिल गईं इत्मीनान की घड़ियाँ

कोई आकर चला गया लेकिन
रह गईं दरम्यान की घड़ियाँ

वक़्त के इंतज़ार में चुप हैं
एक सूने मकान की घड़ियाँ

चोटियों पर अभी तो पहुंचे थे
आ गईं फिर ढलान की घड़ियाँ

आख़िरी वक़्त मुस्कुराया वो
कट गईं इम्तिहान की घड़ियाँ