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खो गया है गांव मेरा / शंभुनाथ सिंह

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खो गया है गांव मेरा
देश की इस राजधानी में ।

बन गईं पगडण्डियाँ
गलियाँ यहाँ सड़कें
बग़ीचे पार्क में बदले
हो गए हैं अब
विहार नगर पुरम
टोले मुहल्ले
जो रहे अपने
बँट गए
बहुमंज़िले आवास
ब्लॉकों, फ़ेज़, पॉकिट में ।

हो गए गुम
व्यक्तियों के नाम
अंकों की निशानी में ।

बन गए वे खेत
गोंयड़ लहलहाते
यहाँ पर जंगल मकानों के
फ़ार्म हाउस मार्केट
इण्डस्ट्रियल काम्प्लेक्स
बने ऊसर शिवानों के
गांव के गन्दे पनाले और गड्ढे
राजधानी में बने यमुना ।

सूर्य पुत्री यहाँ
आकर बनी वैतरणी
प्रदूषण की कहानी में ।

आसमाँ के हो गए
टुकड़े हज़ारों
दिशाएँ भी नाम खो बैठीं
चान्द-तारों को
न कोई पूछता है
हवाएँ गुमनाम हो बैठीं
हो गईं हैं शून्य
सब सम्वेदनाएँ
गांव के रिश्ते सभी भूले ।

है न इस वातानुकूलित
कक्ष में वह सुख रहा जो
फूस की टूटी पलानी में ।

खो गया है गांव मेरा
देश की इस राजधानी में ।