भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख्वाबों में अब आए कौन / कुमार अनिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख्वाबों में अब आए कौन
देखूँ साथ निभाए कौन

सूरज, मुर्गा, चिड़िया चुप
मुझको आज जगाए कौन

दीपक रख तो आया हूँ
देखूँ इसे जलाए कौन

समय स्वयं समझा देगा
अपने और पराए कौन

मैं मुद्दत से उसका हूँ
लेकिन उसे बताए कौन

खुला छोड़ दर सोता हूँ
जाने कब आ जाए कौन

मैं खुद से ही बिछड़ा हूँ
मेरा पता बताए कौन

बिटिया भी ससुराल गयी
अब माथा सहलाए कौन

वो पत्ता है, पेड़ नहीं
पर उसको समझाए कौन

सारे जग से रूठा हूँ
आकर मुझे मनाए कौन