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गणतन्त्र के देवता से सम्बोधित / दिनकर कुमार

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तुम लोग गुप्त-मंत्रणा करो
महल के गुप्त-कक्ष में बैठकर
प्रजा भूख से बिलबिलाती रहे
नील-गगन के तले
रातें गुज़ारती रहे
तुम लोग जारी रखो मंत्रणा
अपने खुफ़िया-तंत्र को
और विकसित करो
और लम्बी करो वह सूची
जिनमें विरोध करने वालों के
नाम दर्ज हैं
एक-एक को निकालो घर से
मार दो किसी चौक पर गोली
घोषणा कर दो
और एक मुठभेड़ में मारा गया
तुम्हारा आतंक फैलते हुए
हृदय-हृदय में समा जाए
गोली की तरह
तुम लोग दावत खाओ
ख़ून और माँस का निर्यात करो
बना दो एक राष्ट्र को
गैस चेंबर
कीड़े-मकोड़े की तरह
मरते रहें हम
घुट-घुटकर
मरघट पर राज करो
लाशों के सिंहासन पर बैठो
हे गणतन्त्र के देवता !