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गरीबा / धनहा पांत / पृष्ठ - 5 / नूतन प्रसाद शर्मा

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पर दूबी अउ कांद घलो हें, जेहर छेंकत फसल के वृद्धि
खरपतवार उखान गरीबा, ओला देखत हेरिस बोल-
“धान के बिरता ला देखेंव मंय, मोर हृदय मं भरिस उमंग
लेकिन जानेंव तोर उपस्थिति, मन मं उभरिस कई ठन प्रश्न।
आतंकी अउ देश के अरि मन, अपन राष्ट्र ला करथंय नाश
उंकरे भाई तुमन घलो अव, उत्तम फसल ला करथव नाश।
मंय किसान बिरता के पालक, पौधा मन मोर पुत्र समान
धान के पौधा के रक्षा बर, मात्र मिंही हा जिम्मेवार।
मोर पुत्र मन बाढ़ंय सनसन, तंय झन देन सकस कुछ हानि
पहिलिच ले तोर बुता बनाहंव, किरिया खाय हवंव प्रण ठोस।”
दूबी कांद उखान गरीबा, बना दीस नींदा के ढीक
बांस के झंउहा मं खब जोरिस, अब उठाय बर करत प्रयास।
झंउहा उठा मुड़ी पर राखिस, चलिस मेड़ तन तन तन दौड़
उंहचे जमों कांद ला खपलिस, झंउहा रीता कर लहुटीस।
कतका टेम पता नइ होवत, सुरुज ला राखे बादर तोप
भूख जनावत तभो गरीबा, करतब पूर्ण करत कर खोप।
इही बीच धनवा हा आइस, जेहर ए सोनू के पुत्र
एकर आदत घलो ददा सहि- जलनखोर गरकट्टा भ्रष्ट।
धनवा चिल्ला हूंत कराइस- “ए खरथरिहा, बूता छेंक
घर चल ओंड़ा आत भात झड़, खटिया सुत लव नींद अराम।”
कथय गरीबा- “धनवा भइया, काय बतांव इहां के हाल
खरपतवार ले खेत पटे हे, ओला खन मंय फेंकत मेड़।
मोर बुता हा बचे हे अधुवन, करिहंव पूर्ण आज सब काम
सैनिक हा दुश्मन ला मारत, तब ओला मिल सकत अराम।”
धनवा हेरिस व्यंग्य के वाणी- “तंय कब ले बइला हो गेस
जलगस जोंतई पूर्ण नइ होवय, जुंड़ा हा रहिथय ओकर खांद।
मोर वचन ला कान खोल सुन- तंय झन झेल व्यर्थ तकलीफ
जीवन पाएस सुख अराम बर, पर तंय हेरत तन के तेल।”
व्यंग्य वचन ला सुनिस गरीबा, सब तनबदन मं लग गिस आग-
“तंय हा सोनू के लइका अस, ओकरे सीख चलत हस राह।
तंय हा छोटे रेहेस जेन दिन, तोर पिता गुरुमंतर दिस
सब के संग हंस खेल मजा कर, पर अस्मिता ला अलगे राख।
उनकर स्तर निम्न गिरे अस, तन के घिनमिन दीन दलिद्र
तंय सम्पन्न धनी के बेटा, तोर ओहदा पद हा ऊंच।
दूसर संग तंय प्रेम बना रख, मंदरस मीठ बोल ला हेर
पर वास्तव मं होय दिखावा, अंदर हृदय घृणा ला राख।
मोर साथ मिट्ठी अस बोलत, मगर हृदय मं मारत बाण
तब तंय मोर बात ला चुप सुन, मंहू बतात जगत के सत्य।
हम्मन नित अभाव ला झेलत, तब फिर कहां मजा सुख पान!
दुर्गति रहिथय गाड़ के खमिहा, तलगस भेदभाव के रोग।
कपड़ा कल मं श्रमिक कमाथय, चुहा पसीना जांगर टोर
सब के तन ढंक के पत राखत, मगर ढंकत नइ खुद के लाज।
पर के भोभस मं भर देवत, रड़ श्रम कर किसान मजदूर
अपन पोटपोट भूख मरत नित, सुख सुविधा ले रहिथंय दूर।
यदि तुम धनवन्ता मन चाहत, होय श्रमिक पर झन दुख भार
अपन धन दोंगानी ला बांटव, लूटव झन पर के अधिकार।”
“तोर ददा हा धन कमाय अउ, मोर चई मं सुपरित दीस
मोर पास आ बांटा देहंव- बोहनी मं थपरा दस बीस।
आज जहर अस बचन ढिले हस, ओकर कसर लुहूं मंय हेर
धधकत आत्मा तभे जुड़ाहय, तब मंय सोनसाय के लाल।”
जरमर करत पढ़त कंस कलमा, धनवा रेंगिस पटकत गोड़
पुनः गरीबा करतब टोरत, कांद अउ निंदा उचात खखोड़।
उदुप एक ठक बिखहर बिच्छी, ओला झड़का दीस चटाक
झार चढ़त सनसना देह पर, ओकर जीव बस एक छटाक।
वापिस होत गरीबा हा अब छोड़ कमाती डोली।
बाय बियाकुल होगे- मुँह ले निकलत कातर बोली।
धनवा ला अमरा लिस तंहने, कहत गरीबा नम्र जबान-
“भइया, तोर मदद मंय मांगत, रंज छोड़ के कर उपकार।
बिखहर टेड़गी हा चटका दिस, झार चढ़त होवत बेहाल
झार उतारे के दवई ला जानत, कर उपचार मोर तत्काल।”
करत गरीबा बहुत केलवली, पर धनवा देवत नइ ध्यान
घाव के ऊपर नून ला भुरकत, देत ठोसरा टांठ जबान।
“खरथरिहा अस मोर बात ला, चुटचुट फांके हस हुसनाक
मोर शरण अब काबर आवत, जा अब बजा काम चरबांक।”
कथय गरीबा- “काम करत मंय, टेड़गी चटका- कर दिस काम
मितवा, बाचिस तोर काम अब- विष उतरे कहि दवई लगाय।”
“यदि तोला बिच्छी तड़कातिस, टांयटांय कइसे धर राग!
आभा मार दुसर ला तंय हा, ए तिर ले पंचघुंच्चा भाग।”
“मंय हा गल्ती करेंव जेन अभि, छोटे समझ क्षमा कर देव
मोला सिरिफ आसरा चहिये, मोर कष्ट ला भिड़ हर देव।
यदि भविष्य मं तंहू अटकबे, मंय हा बनहूं धारन तोर
रेत हा ईंट के मदद ला करथय, तब बन जाथय भव्य मकान।”
“तोर जरुरत होय कभू नइ, तंय जन धन ले कंगलाहीन
अपन मदद मंय स्वयं करत हंव, मंय जन धन ले पूर्ण समर्थ।
बेर हा सब ला रफ ला बांटत, ओकर तिर रफ के भण्डार
चन्दा ले कभु मदद मंगय नइ, चंदा भीख मं मंगत प्रकाश ”
“कोन जीव भावी ला जानत, कभू ना कभु पावत हे कष्ट
ओहर कतको होय शक्ति धर, मदद ला मांगत पर के पास।
होत समुन्दर विस्तृत गहरा, ओकर तिर जल के भण्डार
लेकिन नदी ले पानी मंगथय, आखिर ओहर बनत लचार।
वास्तव मं तंय खूब सबल हस, पर निर्बल ला मंगबे शक्ति
तंय अतराप के धनवन्ता अस, पर गरीब ले मंगबे भीख।”