भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गळगचिया (40) / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काळजा मोत्याँ‘रा ही बिंधीजै सिर नारेळाँ‘रा ही फुटीजै, डील तिलाँ‘रा ही घाणी में पेलीजै फेर तूँ आँ स्यूँ किस्यो न्याऊ है जको सोरै साँसाँ ही छूट ज्यासी ।