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गळगचिया (56) / कन्हैया लाल सेठिया

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दिन रै छोरै रे हाथ स्यूँ सूरज रो दड़ो छूट'र नीचै जा पड़यो, बापडै़ छोरै रो मूँड़ो कलूँठीज ग्यो'र आँख्याँ में आँसू आग्या।
अणसमझाँ रै भँवू तो अन्धेरो पड़ग्यो'र तारा चिमकण नै लागग्या ।