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ग़रीब का तुच्छ स्वप्न / आर्थर रैम्बो / मदन पाल सिंह

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शायद, एक साँझ मेरी प्रतीक्षा करती है
जहाँ मैं शान्ति से करूँगा पान
कुछ पुराने शहरों में
और मर जाऊँगा सुकून से, हो खूब मुदित :
जबसे मुझे सन्तोष का उपहार मिला है ।

यदि छूट जाए मेरा दर्द और लिप्सा
यदि मुझे कभी मिलता है स्वर्ण
तो क्या मैं चला जाऊँगा उत्तर के उन मुल्कों में ?
जहाँ फैले हैं अँगूरों के कुञ्ज,
पर यह तो एक तुच्छ स्वप्न है ।

यह तो घाटे का सौदा है !
और यदि मैं बन जाता हूँ दोबारा फिर वही पुरानी राहों का पथिक
तब वही हरी सराय
कभी नहीं खोलेगी अपने दरवाज़े मेरे स्वागत में !

मूल फ़्रांसीसी भाषा से अनुवाद : मदन पाल सिंह