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गाँधी / तारा सिंह

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आज गाँधी का जनम दिन है
माता पुतली का है उपवास
आओ, चलो, चलकर हे सब
मानव जाति,लोक अभीप्सा के प्रतीक
चिर जीवित, बापू के स्मारक पर
श्रद्धा के दो फ़ूल चढा़यें, और
हाथ जोड़कर करें उनसे विनती

कहें, हे मानव-प्राण सिंधु के अधर से
हरित पट से लिपटे रहने वाले बापू!
एक बार फ़िर से तुम धरा पर आओ
खिसका जा रहा, भारत माँ के
उरोज शिखर से मलयाचल, उसे रोको
कर दो फ़िर से भारत के पुण्यभूमि को
देवों के अमृत सागर–सा विस्तृत

तुम बिन आँसुओं के आँचल से ढंककर
रोता, विश्व का उजड़ा प्रांगण
विदग्ध जीवन के स्वर शोर से कंपित होकर
लहराता, विधुर हवा का दामन
लगता, प्रिय हिमालय का हिम कण
जो घेरे रखता था, मानव का जीवन
धरा से उठ गया, अब कौन करायेगा
सौरभ के गुंजित अलकों से सुमन वर्षण

तुम्हारा सहधर्मी, मालवीय, सुभाष, लाल
जवाहर और पटेल अब नहीं रहे
कौन फ़हरायेगा वन-उपवन, सागर
मरुस्थल में जाकर भारत का विजयध्वज
कौन चीरकर भू तम के आवरण को
भरेगा उसमें रश्मि, जिससे
आलोकित होगा धरा का जीवन