भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाँव का परिचय / शिशुपाल सिंह 'निर्धन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माटी के लाल हम,भारत के भाल हम
हम हैं रहबईया, भईया गाँव के,
हम हैं रहबईया, भईया गाँव के,

धूल भरी संध्या तो फूल भरे प्रात हैं
शीश पे करोड़ दीनवंधू के हाथ हैं
सुन्दर चरित्र-चित्र धरती पवित्र है
चिन्ह मिलत नाहीं यहाँ,पापियन के पाँव के
हम हैं रहबईया भइया...

जन्म से फटी है यहाँ पैर बो-बिबाई
राम कसम जानत हैं पीर हम पराई
सुख से हैं दूर और श्रम से चूर-चूर हम
तन हैं रंगे सबके भईया सूरज की घाम के
हम हैं रहबईया भईया...

माटी के कण-कण में अपना इतिहास है
फूंस की मढ़ईया दिया माटी का पास है
सागर के सीप हम , महलों के दीप हम
हम हैं बैठईया भईया बरगद की छाँव के
हम हैं रहबईया भईया...

बादल के संग फीरे अंकुर की आशा
छेद रही अम्बर को अवनी की आशा
धरती सी दूरी, बादल से रसिया
मिलजुलके गीत लिखें फसलों के नाम के
हम हैं रहबईया भईया...

गोरे-गोरे,गात-गात गीत जहां गोरी
अमुवा की डार परी रेशम की डोरी
प्रियतम की पाती के कौन पढ़े आखर
समझत हैं अर्थ गोरी कागा की काँव के
हम हैं रहबईया भईया...

माटी के लाल हम,भारत के भाल हम
हम हैं रहबईया , भईया गाँव के,
हम हैं रहबईया , भईया गाँव के.