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गार्गी ने पायी स्थापना / संजय तिवारी

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सीता
अहिल्या
अनुसूया
द्रौपदी
राधा
सत्यभामा
रुक्मिणी से भी इतर
एक नाम है मेरे भीतर
किसी क्रांति से आगे दिखती है
वह भी स्त्री है
तुम्हारे ज्ञान से आगे भी लिखती है
महर्षि याज्ञवल्क्य की पत्नी
विदुषी एवं ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी
आत्मज्ञान की आकांक्षी
आश्वलायन गृह्यसूत्र
 ब्रह्मयज्ञांगतर्पण का अंश
साफ़ दिखता है
मैत्रेयी का शब्दवंश
विलक्षण है उस नारी का ज्ञान
बिना किसी अभिमान
पति के साथ ही वन में निवास
नहीं किसी से कोई आस
बीत गए युग पर वह नहीं है बीती
ज्ञान की हर सभा में
वह है जीती
उसी याज्ञवल्क्य से गार्गी ने भी
जीता था ज्ञान
टूट गया था
असंख्य ज्ञानियों का अभिमान
ऋषि के प्रश्नो पर गार्गी के शब्द
सभी हो जाते हैं निःशब्द
कुछ संवाद सुनाती हूँ
गार्गी के प्रश्नो पर
ऋषि के उतर बताती हूँ
जल किसमें ओतप्रोत है?
वायु में
वायु किसमें?
आकाश में
अन्तरिक्ष किसमें?
गन्धर्वलोक में
गन्धर्वलोक किसमें है?
आदित्यलोक में
आदित्यलोक किसमें?
चन्द्रलोक में
चन्द्रलोक किसमें?
नक्षत्रलोक में
नक्षत्रलोक किसमें?
देवलोक में
देवलोक किसमें?
प्रजापतिलोक में
प्रजापतिलोक किसमें?
ब्रह्मलोक में
ब्रह्मलोक किसमें ओतप्रोत है?
गार्गी के प्रश्नो का यह सिलसिला
ऋषि की पूर्ण परीक्षा के बाद ही हिला
 गार्गी की संतुष्टि को भी बताती हूँ
ज्ञान की उस शिखा को दिखाती हूँ
विवाह और बंधन
उसके मन में भी था स्पंदन
कुछ भ्रान्ति थी
याग्यवल्क्य की वाणी में बहुत क्रांति थी
 नेत्र खोलो
 समस्त जगत निःस्वार्थ प्रेम का प्रमाण हैं.
 प्रकृति निःस्वार्थता का सबसे महान उदहारण हैं.
 सूर्य की किरणें?
 ऊष्मा
 प्रकाश
 पृथ्वी पर पड़ता हैं तो
जीवन उत्पन्न होता हैं
 पृथ्वी सूर्य से कुछ नहीं मांगती
 केवल सूर्य के प्रेम में खिलना जानती
 सूर्य भी अपना
 पृथ्वी पर वर्चस्व का
 नहीं करता प्रयत्न
न पृथ्वी से कुछ मांगता हैं.
स्वयं को जलाकर
सृष्टि को देता है जीवन
यह निःस्वार्थ प्रेम हैं
 प्रकृति और पुरुष की लीला
जीवन सच्चे प्रेम का फल हैं.
 सभी उसी निःस्वार्थता से
 उसी प्रेम से जन्मे हैँ फिर
सत्य को खोजने में कैसी बाधा
जिस ज्ञान से
गार्गी ने पायी स्थापना
तुम देख रहे थे सपना
 तुम्हें फिर भी मानती हूँ अपना
इसीलिए ये परतें खोल रही हूँ.
मैं तुम्हारी पत्नी ही बोल रही हूँ।