भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाली ब्याई जी को / 8 / राजस्थानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समधन आप हो जलेबी भरी रसकी, थाने गाल सुणावा म्हारे जचगी।
समधन तो है चटक मटक और समधी भोले भाले,
प्यारी प्यारी समधन हमरी समधी सरस सलोने
ना जाने कैसे फंसगी। थाने गाल...
समधी जी शरमा के बोले सुन राघव की मैया,
आज तू थोड़ा नाच दिखादे करके, ताता थैया,
बात समधनजी के खटकी। थाने गाल...
समधन बोली समधीजी से मत इतना इतराओ, इतने दिन तक सैया बन गये,
अब बीबी बन जाओ, वो बोले बात नहीं मेरे बस की। थाने गाल...
समधन कहती समधीजी से प्राण पियारे, सुनलो सर्दी बहुत गिरेगी
अबकी मेरा स्वेटर बुनलो, यूं कहकर समधन मटकी। थाने गाल...
समधन जब ऑफिस को चल दी, तब समधी घबराये, डांवाडोल होवेगी नैया,
अब क्या जतन बनाये, दोनों बात छोड़ दी हटकी। थाने गाल...