भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत-4 / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टूटें न तार तने जीवन-सितार के

ऎसा बजाओ इन्हें प्रतिभा की ताल से,

किरनों से, कुंकुम से, सेंदुर-गुलाल से,

लज्जित हो युग का अंधेरा निहार के ।


टूटें न तार तने जीवन-सितार के

ऎसा बजाओ इन्हें ममता की ज्वाल से

फूलों की उंगली के कोमल प्रवाल से,

पूरे हों सपने अधूरे सिंगार के ।


टूटें न तार तने जीवन-सितार के

ऎसा बजाओ इन्हें सौरभ के श्वास से,

आशा की भाषा से, यौवन के हास से,

छाया बसन्त रहे उपवन में प्यार के ।