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गीत गाता रहा / जनार्दन राय

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गीत गाता रहा, प्यार पाता रहा,
रात ढलती रही, मन बहलता रहा।
जिन्दगी थी बहुत छूट पीछे गई,
पर फूदकती हुई पास आती गई।
रात में भी प्रभाकर चमकता रहा,
रात ढलती रही मन बहलता रहा।

शान्ति का स्वर रहा गुंजता ही यहां,
पास आती गई दूर थी जो जहां।
कल किशोरी का भी आज बनता रहा,
रात ढलती रही मन बहलता रहा।

शुष्कता निज निरख हार मुरझा गई,
उर की आशा-कली फूल बनती गई।
दिल के प्यालों से था रस छलकता रहा,
रात ढलती रही मन बहलता रहा।

प्रीति जो थी पुरानी नई बन गई,
नीति की रीति भी तो घनी बन गई।
उर मिला था वहां सुख सरसता रहा,
रात ढलती रही मन बहलता रहा।

गोबर्धन उठा काली के कृष्ण ने,
था इशारा किया प्रीत पहचानने।
नेह का नीड़ गोकुल विहंसता रहा,
रात ढलती रही मन बहलता रहा।

स्नेह स्वेता की सुरसरि वहां बह चली,
भक्ति-सरिता गुरु की भली थी पली।
दिल सदा था हरा, मुस्कुराता रहा,
रात ढलती रही मन बहलता रहा।

गीत गाता रहा, प्यार पाता रहा,
रात ढलती रही मन बहलता रहा।

-देसुआ,
25.10.1972 ई.