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गुजरिया / भारतेन्दु मिश्र

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रह-रह घबराता है अब मोरा जिया
चलो चलें गोदना गोदाएँ पिया।

हाथों मे हाथ लिए
मेले मे साथ चलें
मैं सब कुछ हार चुकी
तुम सब कुछ जीत चुके
तुम्ही कहो जादू ये कौन सा किया।

दाहिनी कलाई पर
नाम मै लिखाऊँगी
गाँव की गुजरिया हूँ
भूल नही पाऊँगी
लुका-छिपी मे अब तक बहुत कछ हुआ।

हँसते हो-गाते हो
सपनों में आते हो
धान जब लगाते हो
तुम बहुत सुहाते हो
आँखों मे चाहत का रंग भर दिया।