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गुड़िया / श्रीप्रसाद

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इधर-उधर से खेल-खालकर
गुड़िया रानी आई है
जाने क्या अपने हाथों में
गीला-गीला लाई है

शायद सनी हुई माटी है
पड़ी हुई थी आँगन में
जाकर अभी वहीं खेली थी
और वहीं से आई है

अरे हुए कपड़े भी मैले
उस माटी से ही तो सब
मुँह में भी कुछ उठा-उठाकर
इसने माटी खाई है

बहुत मचाती है यह ऊधम
इधर-उधर झट जाती है
फिर चाहे जितना चिल्लाओ
देता किसे सुनाई है

अब मैं सब कपड़े धोऊँगी
साफ करूँगी मुँह को भी
हाथ-पैर भी धोने होंगे
कैसी शकल बनाई है

जब देखो, खेला करती है
घर के बाहर या घर में
मेरी प्यारी यह गुड़िया है
खिल-खिल हँसती आई है।