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गॉडो / विनोद शर्मा

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कौन है गॉडो<ref>‘सैम्युअल बेकेट का नाटक: ‘गॉडो के इंतजार में’ यह नाटक पहली बार 1952 में, पैरिस के बैबीलोन नामक थिएटर में खेला गया। बेकेट को इस नाटक के लिए 1969 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया</ref>?
गॉडो, गॉडो है और कौन?
वही गॉडो
जो उस नाटक<ref>गॉडो को अंग्रेजी में लिखा जाता है GoDoT यह शब्द बना है एक शब्द GOD और एक शब्दांश OT से। चार्ली चैपलिन का चार्ली अंग्रेजी में चार्ली लिखा व बोला जाता है मगर, फ्रांसीसी भाषा में चार्लट ब्भ्।त्स्व्ज् बन जाता है। नाटक फ्रांसीसी भाषा में लिखा गया था। सो ळवक्वज् शब्द की रचना हुई। संदर्भ: ‘गाइड टु माडर्न वर्ल्ड लिटरेचर’ भाग-2 (मार्टिन सेम्यूअर स्मिथ, पृष्ठ 139-140</ref> का भी पात्र नहीं
जिसमें उसका जिक्र बार-बार आता है
और जिसके नाम को
नाटक के शीर्षक में शामिल किया गया है
और जिसका इंतजार करते हैं
नाटक में दो आदमी हर रोज़
मगर जो कभी नहीं मिलता उन्हें
और कहला भेजता है हर बार
अगले दिन आने को

या ईश्वर?
जिसके
दुनिया के कोने-कोने में
फैले हुए असंख्य भक्त
रोज जपते हैं उसका नाम
और करते हैं इंतजार रात-दिन
उसके प्रकट होने का
ताकि मांग सके वे कोई मनचाहा वर
मगर अभी तक इस युग में नहीं दिए उसने
किसी को भी अपने दर्शन

या चार्ली चैपलिन?
जो उलझा हुआ था जिंदगी में बुरी तरह
टूटा हुआ था ईश्वर की उदासीनता से
मगर जिसने सिद्ध की कला-
इंसान की मजबूरी को
एक मनोरंजक खेल में बदलने की
और हमें सिखाया
निरस्त करना
हताशा और अवसाद के दुष्प्रभावों को
स्वतः स्फूर्त हंसी से
जिसके लाखों प्रशंसक कर रहे हैं
पिछले 33 वर्षों से इंतजार
मृत्यु के उस पार से
उसके इस पार लौटने का
मगर जो अभी तक नहीं आया
और न किसी से मिला ही

या न्याय?
जिसका इंतजार करते हैं
बड़ी शिद्दत से हर रोज
घिसते हुए अपने जूते

शहर की छोटी-बड़ी अदालतों में कानूनी दाव-पेंच
और वकीलों की दुरभिसंधियों के शिकार
असंख्य लोग
मगर जो नहीं मिला उन्हें
आखिरी सांस के उखड़ने तक

या प्रेम?
जिसका इंतजार करते हैं अगणित लोग
(वे लोग-
जो इस घोर भौतिकवादी युग में भी
दिल की धड़कनें सुनने में
काफी ऊर्जा और समय खर्च करते हैं
ओर प्यार के अमरत्व
संबंधों की निरंतरता
और ऐन्द्रिक आकर्षण की शाश्वता
में यकीन रखते हैं
और अंततः फंस जाते हैं
एक विचित्र भूलभुलैया में-)
मगर जो नहीं मिला उन्हें
नब्ज के डूबने और सांसों के टूटने तक

या कामयाबी?
जिसे हर कोई पाना चाहता है
मगर जीवन के संघर्षों से लहूलुहान
अधिसंख्य लोग
(जैसे हमारे सवाल का जवाब
ढूंढ़ने वाले असंख्य जिज्ञासु)
जिसका इंतजार करते रहते हैं
और जो नहीं मिलती उन्हें मरते दम तक।

शब्दार्थ
<references/>