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गोधूलि की बेला / दीपा मिश्रा

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इस गोधूलि की बेला में
मन किसे तलाशा करता है
है कौन यहां जो लुक छिप कर मुझसे आंख मिलाता है

जब बोल पपीहे का सुमधुर
अंतरमन में बस जाता है
हर आहट पर यह लगता है
कि जैसे कोई आता है

बहती हुई हवा संग मेरे
हंसी ठिठोली करती है
मैं पूछूं ऐसे क्यों करती
कहती मेरी सहेली है

दूर आसमां मुझे पुकारकर
कहता यूं ही हंसती रह तू
आ पसार ले अपना आंचल
 तारों से मैं इनको भर दूं

सौगात समेटे तारों की
मैं देखूं बाट बहारों की
इतने में वे आ जाते हैं
हम दूर कहीं खो जाते हैं