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घटि कै कटि रंचक छीन भई / सोमनाथ

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घटि कै कटि रंचक छीन भई, गति नैननि की तिरछानि लगी।
'ससिनाथ कहै उर ऊपर तैं, ऍंचरा उघरे ते लजानि लगी॥
लरकाई के खेल पछेल कछूक, सयानी सखीन पत्यानि लगी।
पिया नाम सुने तिय द्योसक तैं, दुरिकै मुरिकै मुस्क्यानि लगी॥