भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घनआनँद प्यारे कहा जिय जारत / घनानंद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

’घनआनँद’ प्यारे कहा जिय जारत, छैल ह्वै फीकिऐ खौरन सों ।
करि प्रीति पतंग कौ रंग दिना दस, दीसि परै सब ठौरन सों ॥
ये औसर फागु कौ नीकौ फब्यौ, गिरधारीहिं लै कहूँ टौरन सों ।
मन चाहत है मिलि खेलन कों, तुम खेलत हौ मिलि औरन सों ॥