भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर से बाहर भेली सुन्नर, लट छिटकाबैत हे / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ससुर बहू के मुँह को देखकर उसके गर्भवती होने का अनुमान लगा लेता है। वह अपनी प्यारी बहू से उसके इच्छित भोजन के विषय में पूछता है। बहू इमली टिकोला आदि चीजों के खाने से तो अपनी अनिच्छा प्रकट करती है, किंतु, मछली खाने की इच्छा व्यक्त करती है। मल्लाह से मछली मँगवाकर ससुर उसे खाने को देता है। प्रसव के समय सास उससे बोलती नहीं और उसका पति वहाँ उपस्थित नहीं है। बच्चा के जन्म लेने पर सोहर शुरू हो जाता है, लेकिन पति की अनुपस्थिति में उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा है। अंत में, वह नाई को अपने पति के पास कदली के वन में खबर दे आने को भेजती है। नाई जाकर उसके पति को खबर दे आता है तथा शुभ संवाद के लिए पुरस्कार पाता है।
इस गीत में ऐतिहासिक तथ्य का विचार न करने के कारण कुछ लोक-भावना आ गई है। राजा दशरथ मछली मँगवाते हैं। पति वन में है। लेकिन, लोक-मानस के लिए ऐसी अस्वाभाविकता क्षम्य है। इसके अतिरिक्त लोक गीतों के सभी नायक राजा दशरथ, नायिका कौशल्या और पुत्र रामचंदर हैं। इस गीत की यह भी विशेषता है कि राम द्वारा सीता के निर्वासन का उल्लेख नहीं है, वरन् राम ही अयोध्या से बाहर कदली के वन में हैं।

घर सेॅ बाहर भेली सुन्नर, लट छिटकाबैत हे।
ललना, दुअरे सेॅ आबै राजा दसरथ, मुहमाँ निरेखत हे॥1॥
किए<ref>क्या</ref> मन भाबलै इमलिया, कि किए मन टिकोलबाा हे।
ललना, किए मन भाबलै मछरिया, कि कहि के सुनाबह हे॥2॥
नहिं मन भाबलै इमलिया, कि नहिं मन टिकोलबा हे।
ललना रे, एक मन भाबलै मछरिया, मछरिया मोहि चाहिय हे॥3॥
घर पछुअरबा मलहवा छिकै, मलहा तोहिं मोर हित बसु हे।
ललना रे, जमुना में फंेकू महजाल, मछरिया मोहि चाहिय हे॥4॥
सासहिं मुखहुँ न बोलै, बबुआ जलम लेलै हे।
ललना रे, दुअरे पर बाजै बधाइ, महल उठै सोहर हे॥5॥
सोइरी सेॅ बोलै रानी, कि औरो गरब सेॅ<ref>गर्व से</ref> हे।
ललना रे, राजा गेल केदली के बनमा, सोहर नहीं सोभत हे॥6॥
घर पछुअरबा में नौआ बसु, नौआ मोरा हित छिकै हे।
ललना रे, सीताजी के भेलेन नंदलाल, लोचन पहुँचाबै हे॥7॥
सात कुइयाँ<ref>कुआँ</ref> सात पोखर, औरो केदली गाछ<ref>पेड़</ref> हे।
ललना रे, तहि तर<ref>उसके नीचे</ref> राम करे दतुअन, नौआ नाचैतेॅ<ref>नाचता हुआ</ref> आबै हे॥8॥
कहाँ के छिके<ref>कहाँ के हो</ref> तोहें नौआ, कहाँ कैने जाएछै<ref>कहाँ जा रहे हो</ref> रे।
ललना रे, किनका क भेलेन नंदलाल, लोचन<ref>कन्या के संतानवती होने पर पितृगृह से भेजा जाने वाला माँगलिक उपहार, जिसमें सोंठ, गुड़ आदि चीजें रहती हैं</ref> पहुँचाबै हे॥9॥
अजोधा के छिकाँ हम नौआ, केदली बने जायछी हे।
ललना रे, सीताजी क भेलैन नंदलाल, लोचन पहुँचाबै हे॥10॥
घर पछुअरबा सोनरबा छिकें, सोनरा तोहिं मोरा हित बसु हे।
सोनरा, गढ़ि देहु कानहुँ सोनमा, कि नौआ पहिरायब हे॥11॥

शब्दार्थ
<references/>