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घर / ब्रजेश कृष्ण

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बहुत दिनों बाद घर आया हूँ
पिता अब नहीं हैं घर में
माँ मिली तो पिछली बार से ज़्यादा देर तक
कंधे से लग कर रोयी
और खोयी रही अपनी काल-कोठरी में
जहाँ अब कोई नहीं जाता
उसके सिवा

लोगों से घिरा
घर में बैठा हुआ मैं
ढूँढ़ता रहा घर को
दरअसल मैं घर को
पहचानने की कोशिश कर रहा हूँ
और घर मुझे

इसके पहले
कि मैं और घर
औपचारिक रूप से मुस्करायें
या फिर कह ही लें अलविदा
मैं चाहता हूँ देखना सारा घर
घर का हर कमरा/हर कोना
जहाँ मेरा रोना
हँसी/इच्छा/स्वप्न/नफ़रत
नींद और बेचैनी
मुझे मिलेगी मुझसे बातें करते हुए

मैं ढूँढूँगा
हर एहसास का जन्म-बिन्दु
उनका आधा-अधूरा या पूरा आकार
तभी तो मैं कह सकूँगा
कि मैं घर आया हूँ
बहुत दिनों बाद।