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घोंघा / दिनेश्वर प्रसाद

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घोंघा जी, यह सच है —
आप हैं, इसीलिए दुनिया है ।
काटते, झपटते नहीं, ख़ून नहीं पीते हैं ।
कीचड़ में रहते आप, पानी पर जीते हैं ।

घोंघा जी, मानें या मत मानें,
कब तक केंकड़ों, साँपों और जोकों से
दुनिया बच पाएगी ?
खोल में छिपना अब बन्द करें,
सूमों में दंश भरें ।

कीचड़ नहीं, हवादार सूखे में रहिए आप ।
पानी नहीं, मिट्टी का वज्रासव गहिए आप ।

(25 दिसम्बर 1964)