भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलो गुनगुनाएँ ग़ज़ल के बहाने / डी .एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलो गुनगुनाएं ग़ज़ल के बहाने
ज़रा मुस्कराएं ग़ज़ल के बहाने

मज़ा तो तभी जब तुम्हारे दिये ग़म
तुम्हीं को सुनाएं ग़ज़ल के बहाने

पुराने से दिल भर गया है अगर तो
नये गुल खिलाएं ग़ज़ल के बहाने

बहुत दूर से ख़ूब होती हैं बातें
कभी पास आएं ग़ज़ल के बहाने

हमारे भले दिल मिलें ना मिलें ,पर
नज़र तो मिलाएं ग़ज़ल के बहाने

ज़माना हक़ीक़त से महरूम क्यों हो
उसे सच बताएं ग़ज़ल के बहाने

रहें ना रहें हम यही एक ख़्वाहिश
तुम्हें याद आएं ग़ज़ल के बहाने