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चलो दंड निर्धारित करो / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

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चयनित किया तुझे राज-पद, तू जनता का
अभिमान है
फिर चूक कैसी और कहाँ.... या जानकर अंजान है...?
इन अव्यवस्था को निचोड़ों शर्तों को पारित करो
हिम्मत न हो उद्दंड की, चलो दंड निर्धारित करो...

इन दानवों के गर्दनों की भी चलो अब नाप लो
तब मानेंगे तेरी चौड़ी छाती, पर अभी न शाप लो...

क्यूं शौर्य गाथा हो सुनाते अपने हिन्दुस्तान की
अब तक कटी न हाथ जो है चीर हरती मान की...!

एक तंत्र स्थापित करो, इन्हें टोहकर पहचान लो
माँ भारती इन नन्हीं जानों में छिपी है जान लो...

जिस पटल खुलता गया. केवल नहीं वही भेद है
हर जगह नजरें गड़ा, मिले और कितने छेद हैं...

ये दरिंदे भी तो आखिर हिस्से इसी समाज के
पर डर नहीं है पापियों को जनता की आवाज से...

साम्राज्य स्थापित किए, भय व्याप्त है इनका यहाँ
मंदोदरी की भांति कही, भार्या की सुनता कहाँ...?

ऐ, नर पिशाचों... भय करो मासूम आहों से डरो
कहर ढा देगी, हिलेगी, नींव की... चिंता करो...!

पर अहंकारी, सत्ता की बावत है बातें बोलते
तंत्र में लिप्त भ्रष्टता के, दर-परत-दर खोलते...

उम्मीद पर आँखें टिकी, हर गतिविधि पे ध्यान है
अब मांगता परिवेश परिवर्तन, न तू अंजान है।

दे रही संकेत, ज्योतिर्मय की बातों को गहो
हुंकार जनता चाहती, मुँह खोलकर कुछ तो कहो...