भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चांद चल रहा है / संजय चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सच्चाई जो भी हो
चांद चलने की बात ही अच्छी

गर्मी और घुटन के बीच
कहीं दुनिया लेटी है चुपचाप
जैसे गर्मी पर दुनिया को लिटाकर
किसी ने ऊपर से घुटन रख दी हो

बादलों को चीरती है चांदनी
और ख़ुशबू बनकर गिर पड़ती है
छतों पर, पेड़ों पर, पहाड़ों पर
हर ऊँची चीज़ पर
जो घुटने से ऊपर उठ आई है

दुनिया वैसी ही लेटी है चुपचाप
बादल रुके हैं
चांद चल रहा है।