भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चूका हुआ प्रेमी / राजेश शर्मा 'बेक़दरा'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक चूका हुआ प्रेमी हूँ!
यह कथन करते समय मुझे अपनी सीधी रीढ़ की हड्डी के धनुष बनने का कतई दुख नही हैं
असल मे सत्य स्वीकार करना किसी भी अपराध की श्रेणी में नही आता हैं,
प्रेम का सम्प्रेषण शायद विशेष प्रकार की भाषाशैली की मांग करता हुआ आज भी नाराज हैं मुझसे,
मेरे पास सीमित शब्दकोश के साथ चातुर्य वाक शैली का मरुस्थलीय सूखा था,
इसलिए मेरे प्रेम में शुष्कता थी,
एक प्रकार का खारापन लिए में तलाशता रहा,
खुद के लिए,
कुछ बूँदे मीठे पानी की,जैसे चातक ढूंढता है
बारिश की पहली बूँद
हाँ, वो मेरे लिए बारिश की पहली बून्द की तरह थी
लेकिन बून्द में ओर मेरी प्यास में एक शताब्दी की दूरी थी चाहकर भी उस दूरी पर प्रेम सेतु नही बना पाया
आज भी उसी सूखे मरुस्थल पर चातक बन
तलाशता रहता हूँ
उस के प्रेम की पहली बूँद