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छत टपकती है किसी दीदा-ए-तर की सूरत / ज़ाहिद अबरोल

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छत टपकती है किसी दीद-ए-तर<ref> आंसू भरी आंख</ref> की सूरत
काश देखे कोई आ कर मिरे घर की सूरत

यास की गोद में लेटा है मिरा <ref>क़ल्ब-ए-अज़ीज़</ref>
एक उखड़े हुए बेजान शजर</re>पेड़</ref>की सूरत

अपनी उम्मीदों से कतराती है अब मेरी हयात<ref>जीवन, ज़िंदगी</ref>
इक ख़तावार<ref>अपराधी,दोषी</ref>की शर्मिन्दः नज़र की सूरत

छत ख़ुशी की है न है आस की दीवार कोई
दिल मिरा है किसी उजड़े हुए घर की सूरत

कितनी बदली हुई लगती है हमें ऐ “ज़ाहिद”
एक ही शख़्स<ref>व्यक्ति</ref> के जाने से नगर की सूरत

शब्दार्थ
<references/>