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छपनिया काल रे छपनिया काल / राजस्थानी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ओ म्हारो छप्पन्हियो काल्ड
फेरो मत अज भोल्डी दुनियाँ में.

बाजरे री रोटी गंवार की फल्डी
मिल जाये तो वह ही भली

म्हारो छप्पन्हियो काल्ड
फेरो मत अज भोल्डी दुनियाँ में.