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छाती / हरिऔध

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नाम को जिन में भलाई है नहीं।
बन सकेंगे वे भले कैसे बके।
कह सकेंगे हम नरम कैसे उसे।
जो नरम छाती न नरमी रख सके।

जो रही चूर रँगरलियों में।
जो सदा थी उमंग में माती।
आज भरपूर चोट खा खा कर।
हो गई चूर चूर वह छाती।