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छिटगा-3 / शान्ति प्रकाश 'जिज्ञासु'

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1.
लाड कन्न वळु कैकु बुरु नि सोच सकदू
आंसू अपड़ा बगै सकदू कैका देख नि सकदू।


2.
कैकु तैं तुमरा नौ कु सारू नी च
मंगदरा तैं आग क्या खारू नी च।

3.
मन तैं अपड़ा रग-बग करण नि दियां
इना माना ह्वैगी त उना हूंण नि दियां ।


4.
ब्वै बुबा की सेवा करल्यादी मन लगैकी
यु परणी दगड्या छन कुजणी कब तकै की।


5.
बाछी वैकी नि बुरकदी जैकु कीलू मुंगरु मजबूत च
नथर आज एका उजाड़ त, भोळ हैंका च ।