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छिपा हुआ हो चंदा जो बादल में कुछ / कुमार अनिल

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छिपा हुआ हो चंदा जो बादल में कुछ
उसका मुखड़ा चमके यूँ आँचल में कुछ

लगता है अब वो भी सियासत सीख गया
उसकी बातें पल में कुछ हैं पल में कुछ

उसको देखा साथ तेरे तो लगा मुझे
नई बात है जैसे ताजमहल में कुछ

लहरें उटठी यादों की दिल में ऐसे
फेंका हो कंकर सा जैसे जल में कुछ

लगता है फिर मासूमो का क़त्ल हुआ
शोर सा है इंसानों के जंगल में कुछ

पहला पहला प्रेम पत्र होगा शायद
उसने रखकर भेजा है नावल में कुछ