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छुट्टी की भी छुट्टी कर दी / मधुसूदन साहा

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सोचा था दिनभर खेलूँगा
खुलेआम दोपहरी में।

पर, आते ही मुंडेर पर
सूरज जा बैठा ऐसे,
रेतीले टीले पर आकर
दैत्य बैठता है जैसे,

ऐसा जादू चला कि डूबे
सब कुछ लू की लहरी में।

छुट्टी की भी छुट्टी कर दी
जबरन आकर गरमी ने,
खेल-कूद से कुट्टी कर दी
आँख दिखाकर गरमी ने,

घर से हुआ न कभी निकलना
माँ की पहरा-पहरी में।

सोचा था बगिया में जाकर
खूब टीकोला तोड़ूँगा
लाख बिठाये पहरेदारी
छिमियाँ कभी न छोड़ूँगा

वहीं पास में देर-देर तक
डुबकी दूँगा नहरी में।