भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोटी कविताएँ-3 / सुधा गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तलाश : सुख की

भीड़
आपाधापी
और
गहमागहमी
भरे बाज़ार में
तलाशते रहे
सभी
अपने-अपने सुख ।
टकराते रहे
एक -दूसरे को धकियाते रहे
और ख़रीदते रहे
चाव से भर-भरकर,
खूबसूरत मुखौटों में छिपे
दु:ख ।
-0-
सिर्फ़ एक तुम

उदासी में डूबी सुबह
उदासी में भीगी शाम
दिन
रात
हर पहर
हर पल
उदासी का जाम,
ज़िन्दगी की बाँसुरी पर
सिर्फ़ एक धुन
बजती है
एऽऽ क
तेरा
 नाम !
-0-
दो पल

कहाँ-कहाँ हो आया मन
दो पल में,
क्या -क्या पा,
खो आया मन
दो पल में !
-0-
इन्तज़ार

इन्तज़ार …
पलकों पर काँपते
आँसुओं की बनदनवार
कि
पुतली की रोशनी में
झिलमिलाते
दियों की क़तार----

(एक क़ाफ़िला : नन्ही नौकाओं का )