भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोटी कविताएँ- 4 / सुधा गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मत लिखना खोटी क़िताब

नन्ही चिड़िया
फुदक-फुदककर
आगे -पीछे
उड़-उड़कर
सिखा रही है अपने नन्हे शिशु को उड़ना

चिड़िया तो चिड़िया
उसे खानी है बेटे की कमाई ?
रचाना है बेटों का ब्याह ?
( मतलब तुम समझो मूरख)

अपने से छोटों को
देते चलना है
भूलकर भी मत रखना पाने का हिसाब
मत लिखना छोटी क़िताब
( पाने की)
-0-

खुशी-1

खुशी
मुझे शापित राजकुमार-सी
कभी न टूटने वाली नींद में खोई हुई
मिली,
जिसके रोएँ-रोएँ में सुइयाँ चुभी थीं ।
धीरज से , मेहनत से
रात-रात भर जागकर
मैंने उसके रोएँ-रोएँ में चुभी सुइयाँ निकाली !
जब
सिर्फ़ उसकी पुतलियों की दो सुइयाँ
शेष रहीं,
तभी
मुझे
अपने से , अपना ख़याल आया
ख़ुद को देखकर बड़ा रोना आया :
खुशी मुझे ऐसे देखेगी, तो क्या सोचेगी भला ?
क्यों न ज़रा ठीक-ठाक हो लूँ !
अभी आकर ये दो बाक़ी सुइयाँ भी निकालती हूँ
XX
मेरी वापिसी तक
वह किसी और की हो चुकी थी ।
-0-
ख़ुशी-3

फिर ललचाया
अपने पीछे,
फिर दौड़ाया।
हाँप-हाँपकर
जैसे ही उस तक पहुँची
गहरे हरे अँधेरों में छलांग लगा
गुम हो गया
चंचल हिरनौटा ।

पाँव चुभे काँटे
सिर्फ़ दर्द: मेरे बाँटे,
आँखों में जल भर आया ।

(एक क़ाफ़िला : नन्ही नौकाओं का )