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जगत कहता न थकता मैं / अनुराधा पाण्डेय

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जगत कहता न थकता मैं, सतत शृंगार लिखती हूँ।
यमक अनुप्रास भर-भर कर, अथक अभिसार लिखती हूँ।
उन्हें हो ज्ञात शायद यह, प्रणय है मूल जगती का
अतः मैं नेह मसि लेकर, भुवन का सार लिखती हूँ।