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जबतक यह आस्था है मनमें / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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जबतक यह आस्था है मनमें, देंगे ‘मन-वाञ्छित सुख’ भोग।
तबतक भोग-कामनाका नित प्रबल रहेगा चालू रोग॥
भोग-कामना देगी नित्य-निरन्तर दुःख, बनेंगे पाप।
पापोंका फल होगा भीषण कष्ट , नरक, अतिशय संताप॥
सदा अपूर्ण भोग हैं निश्चित, क्षणभंगुर, दुःखोंके खेत।
इनमें जो सुख मान, चाहता इन्हें, मूर्ख वह मनुज अचेत॥
मानव-जीवनका है शुचितम पावन परम एक ही काम-
भव-बन्धन से मुक्ति-प्राप्ति-हित करना नित्य भजन निष्काम॥
इससे भी ऊँचा है अनुपम लक्ष्य-’प्रेम’ पञ्चम पुरुषार्थ।
बड़े-बड़े ज्ञानी-मुनि करते कठिन तपस्या जिसके अर्थ॥