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जब चिनारों से धूप झरती है / दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी'

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जब चिनारों से धूप झरती है
छाँव तारों से माँग करती है

आज तक भी नदी नहीं समझी
रात-दिन पुल पे क्या गुज़रती है

छत जो टूटी तो यह हुआ मालूम
रौशनी किस तरह बिखरती है

बहते-बहते कहाँ चले आये
अब ज़मीं से हयात डरती है

रासा काटती हुई बिल्ली
बस के पहिए में दब के मरती है

ऊँघती रह्ती है छतों पे ‘शबाब’
धूप आँगन में कब उतरती है