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जब तुम नज़र न आए दुनिया बनी वीराना / परमानन्द शर्मा 'शरर'

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जब तुम नज़र न आए दुनिया बनी वीराना
घबरा उठा फ़ुर्क़त में हर गाम पे दीवाना

इन चाँदनी रातों में मुमकिन हो तो आ जाओ
ऐ मेरी परी-पैकर ऐ जलवा -ए-जानाना

वो मीठी मुलाक़ातें, वो वस्ल के दिन,रातें
तन्हाई में तारों की वोह शाने-असूराना

समझे थे हक़ीक़त है, समझे थे कि दायम है
ऐ शौक़ की नादानी अफ़साना था अफ़साना

इन हिज्र की घड़ियों में मैं सोचता हूँ अक्सर
मायल था हुआ क्योंकर तुम पर दिले-दीवाना

कुछ ग़म न हुआ तुमको क्यों मेरी तबाही का
क्यों शम्मअ रही जलती जब जल गया परवाना

क्यों ‘शरर’ के सजदों पे तुम हो न सके क़ायल
गर था न तुम्हारा तो किसका था वो दीवाना