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जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गए / महावीर शर्मा

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जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गये।
आंधी कुछ ऐसी चली नक़्शे क़दम भी खो गये।

खो गई वो सौंधी-सौंधी देश की मिट्टी कहाँ?
वो शबे-महताब दरिया के किनारे खो गये।

बचपना भी याद है जब माँ सुलाती प्यार से
आज सपनों में उसी की गोद में ही सो गये।

दोस्त लड़ते थे कभी तो फिर मनाते प्यार से
आज क्यों उन के बिना ये चश्म पुरनम हो गये!

किस क़दर तारीक है दुनिया मेरी उन के बिना
दर्द फ़ुरक़त का लिए अब दिल ही दिल में रो गये।

था वो प्यारा-सा घरौंदा, ताज से कुछ कम नहीं
गिरती दीवारों में यादों के ख़ज़ाने खो गये

हर तरफ़ ही शोर है, ये महफ़िले-शेरो-सुखन
अजनबी इस भीड़ में फिर भी अकेले हो गये