भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब से तेरे बदन के गुलाब आस-पास हैं / 'महताब' हैदर नक़वी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब से तेरे बदन के गुलाब आस-पास हैं
लगता है सब ख़जान-ए-ख्वाब आस-पास हैं

जैसे धुले-धुलाए खड़े हों हज़ूर-ए-यार
दिल आइने के चश्मा-ए-आब आस-पास है

अपने ख़याल-ओ-ख्वाब के अंबार के तले
खुश हैं के सब हमारे सराब आस-पास हैं

अब भी हम अपने आप से कुछ दूर-दूर हैं
अब भी वही सवाल-ओ-जवाब आस-पास हैं

या हम ही हो गए हैं तही-दस्त१ इन दिनों
या ज़िन्दगी के सारे हिसाब आस-पास हैं

१-ख़ाली हाथ